Friday, 1 May 2015

योग - धर्म का दर्पण


योग सभी धर्मों के मुख्य गुणों को अपने में संकलित किए हुए है। धर्म मौलिक,आध्यात्मिक,तात्विक,नैतिक,सामाजिक एंव व्यवहारिक विचारों का संग्रह है जो मनुष्यो को संगटठित करता है और आध्यात्मिक विकास का अवसर प्रदान करता है। धर्म जहाँ व्यक्ति व समाज के उत्थान का स्रोत है वहीं समाजिक मूल्यों के पालन करने का नियम भी है जिससे लोग अपने आपसी संबंधों का सामन्जस्य बनाएं। धर्म एक अदाकारी सिद्धांत है जो हर धर्म अपने समुदाय को आकर्षित व संगठित करता है। हर र्धम का मुख्य उद्देश्य मनुष्य के नैतिक एंव आध्यातमिक स्तर को ऊंचा उठाना होता है।  


योग में उपरोक्त गुणों की समानता है।योग मानव-देह एंव मन के व्यावहरिक प्रयोगात्मक पक्ष पर विशेष बल देता है तथा नैतिक व आध्यात्मिक उपलब्धि का उत्थान करता है। शरीर,मन एंव इंद्रियों के मल शोधन के लिए महर्षि पतंनजलि के योग में आठ अंग का वर्णन मिलता है। श्री महर्षि पतंनजलि मुनि के अनुशार इन योग अंगों के नाम हैं-यम,नियम,आसन,प्रणायाम,प्रत्याहार,धारणा,ध्यान और समाधि।

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